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नुपूर शर्मा और हिमांशु कुमार का फर्क (डायरी, 16 जुलाई, 2022) 

किसी भी देश और समाज को समझना हो तो सबसे आसान तरीका उसके साहित्य को पढ़ना है। साहित्य से हमें लोगों के रहन-सहन, सामाजिक...

गुजरात दंगे के मामले को अब इस दृष्टिकोण से भी देखें (डायरी, 14 जुलाई, 2022) 

पत्रकारिता और साहित्य दो अलग-अलग चीजें हैं। हालांकि दोनों में समानताएं भी हैं। कई बार पत्रकारिता और साहित्य दोनों एक साथ शामिल भी किये...

ऐतिहासिक अशोक स्तंभ को विद्रूपित करने के पीछे की मंशा (डायरी 13 जुलाई, 2022)

देश में अराजकता की स्थितियां उत्पन्न की जा रही हैं। दुखद यह है कि ऐसा स्वयं सरकार कर रही है और देश के अखबार...

मेरे मुल्क के हुक्मरान (डायरी 13 जून, 2022) 

भारत में मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं। न्यायपालिका को यह संदेश दिया जा रहा है कि कार्यपालिका जो चाहे वह कर सकती...

किस वास्ते कहो हम कोई बाजार देखें (डायरी 11 जून, 2022)

भारतीय समाज में विभेदकों यानी जिनके आधार पर समाज में विभाजन किया जाता है, की कोई कमी नहीं है। लेकिन मुख्य तौर पर धर्म...

आरएसएस के कान कौन उमेठ सकता है? (डायरी 6 जून, 2022) 

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश आज के समय के लिहाज से महत्वपूर्ण पत्रकार हैं। वे सोशल मीडिया पर खासे लोकप्रिय हैं। उम्र के हिसाब से भी...

खबरों में शीर्षकों का खेल कितना समझते हैं आप? (डायरी 16 मई, 2022) 

खबरों के लेखन के संबंध में एक नियम है हम पत्रकारों के लिए कि हमें भावुक नहीं होना चाहिए। खबरें चाहे जैसी भी हों,...

मुल्क में जहर घोलता आरएसएस (डायरी 13 मई, 2022)

भाजपा अब सियासत करना जान गई है। यह इस वजह से भी संभव हुआ है क्योंकि वह 2014 से सत्ता में है। दरअसल, सियासत...

शिक्षा और हमारे हुक्मरान (डायरी 2 मई, 2022)

कल शाम से पहाड़ पर हूं। यह हिमाचल प्रदेश का मनाली है। यहां के समाज और संस्कृति के बारे में कुछ जानकारियां गूगल पर...

उमर खालिद और दिल्ली हाईकोर्ट की ‘लक्ष्मण रेखा’ (डायरी 28 अप्रैल, 2022)

 बचपन बार-बार याद आता है। इसकी एक वजह तो यही है कि बचपन के अनुभव एकदम अलहदा होते हैं। बचपन में जो हम देखते-समझते...

मुख्तसर और मुक्तसर (डायरी 17 अप्रैल, 2022) 

बचपन में कई तरह की आदतें थीं। एक थी, चप्पल नहीं पहनने की। नंगे पैर घूमता रहता था। स्कूल के जूते से बड़ी चिढ़...

डाक्टर बनने के लिए भारतीय छात्र-छात्राओं के यूक्रेन जाने का सबब (डायरी 1 मार्च, 2022)

मनुष्यों की औसत आयु का हिसाब-किताब बदलता रहता है। यह अलग-अलग देशों में अलग-अलग है। मसलन, वर्तमान में भारत में 69.4 वर्ष है और...

भौकाल बनाना आज के लिए महत्वपूर्ण (डायरी 20 फरवरी, 2022) 

हिंदी में अनेक शब्द ऐसे हैं, जिनके कई अर्थ होते हैं। ऐसा क्यों होता है, यह एक बड़ा सवाल है। हालांकि कई बार ऐसा...

‘जनसत्ता’ का ‘आरएसएस सत्ता’ बन जाना (डायरी 13 फरवरी, 2022)

एक सवाल मेरी जेहन में हमेशा रहता है। सवाल यही कि जनसत्ता नामक समाचार पत्र आखिर आपातकाल के दिनों में भी इतनी चर्चा में...

 पत्रकारिता, देश और नौजवान (डायरी 28 जनवरी, 2022) 

आज का दिन भी बहुत खास है। दिल्ली से प्रकाशित जनसत्ता के पहले पृष्ठ पर एक तस्वीर है। इस तस्वीर में वैसे तो देश...

अगर रामनाथ कोविंद दलित के बजाय ब्राह्मण होते! डायरी (26 जनवरी, 2022)

जाति कभी नहीं जाती। अक्सर यह बात सुनता हूं और कभी--कभार तो मैं भी लिख देता हूं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि...

गलवान में झंडा-झंडा(डायरी 5 जनवरी, 2022) 

पत्रकारिता के अनुभवों में जो एक अनुभव शामिल नहीं है, वह ‘युद्ध पत्रकारिता’ है। मैंने आपदाओं की रिपोर्टिंग की है, सरकारों के बनने-बिगड़ने की...

जम्मू के मंदिर में भगदड़ और पाखंड का लब्बोलुआब(डायरी, 3 जनवरी 2022)  

आज दो महान लोगों को याद करने का दिन है। एक क्रांति ज्योति सावित्रीबाई फुले और दूसरे मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा। दोनों का...

जनसत्ता ने जीतनराम मांझी की खबर क्यों छापी? (डायरी, 20 दिसंबर 2021)

मामला पत्रकारिता का है। पत्रकारिता का एक दूसरा पक्ष भी है। यह पक्ष भी कोई आज का नहीं है। मेरा अपना मत है कि...

‘जनसत्ता’ का ‘राजसत्ता’ बन जाना (डायरी, 18 नवंबर 2021)

बौद्धिक लेखन में किसी को क्रेडिट देना महत्वपूर्ण माना जाता है। मेरे हिसाब से यह दिया भी जाना चाहिए और ना केवल लेखन में...

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