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sudha arora

दीवारों में चिनी हुई चीखें -3

तीसरा और अंतिम हिस्सा  उन दिनों नूं रानियां ( बहूरानियां ) सिर्फ कहने को रानियां थीं, औकात दासियों से बदतर थी। अपनी मर्जी से कोई फैसला लेने…
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एक लाइन में कई कमरों वाला वह तीसरा तल्ला -2

दूसरा हिस्सा मौसी मां की बड़ी लाड़ली थी। मुझे अपने होश संभालने के बाद जो पहली शादी याद है, वह मौसी की शादी थी। विदाई की रस्म जेहन में क्यों…
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मां की कविताएं उन किताबों में से गुम होती चली गईं जिन्हें छिपाकर दहेज के साथ ले आई थीं-1

पहला हिस्सा  मैं जब भी यहां, अपने मायके कलकत्ता आती हूं,  इस कमरे के बिस्तर के इस किनारे पर जरूर लेटती हूं- जहां मां लेटा करती थीं क्योंकि…
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एकांत और अकेलेपन के बीच – मन्नू भंडारी – कुछ स्मृतियों के नोट्स

 पहला हिस्सा  4 सितम्बर 2008 - क्षमा पर्व मन्नू जी का फोन - सुन सुधा, एक बात तुझसे कहना चाहती हूं। यह तो वे रोज ही कहती हैं। उन्हें कुछ…
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 अविश्वसनीय थी मां की यातना और सहनशीलता (भाग – दो )

भाग - दो  हमें तो इस घटना के बारे में मालूम पड़ा गेंदी बाई से। छुट्टियों में हम जब कभी भानपुरा जाते तो मैं गेंदी बाई से कुरेद-कुरेद कर उनके…
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सभी जाति धर्म की स्त्रियों की तकलीफें एक जैसी हैं- सुगंधि फ्रांसिस (भाग -तीन)

तीसरा और अंतिम हिस्सा विवेक ने समाज को बदलने का जो बीड़ा उठाया था उसका एक रंग यह भी था कि स्वयं भी झोपड़पट्टी में रहकर झुग्गी - झोपड़ियों के…
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गरीबों-मज़लूमों के लिए जिनका घर कभी बंद नहीं होता (भाग – एक)

हाल ही में देखी एक फिल्म का दृश्य है - एक छोटे से कमरे में दो दोस्त दाखिल होते हैं। घुसते ही एक कह उठता है - ‘यह कैसा कमरा है भाई, शुरु होते…
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बाल बंधुआ से सामाजिक कार्यकर्ता बनने वाली सखुबाई की कहानी

मैं सुखदम्बा की रहनेवाली हूं। मेरे माता-पिता वहीं रहते हैं। हम आठ भाई-बहन हैं। जब मैं बहुत छोटी थी, लगभग पांच-छः बरस की या उससे भी छोटी, तब…
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लेखक की निजी ज़िन्दगी और रचना संसार के बीच का ‘नो मेंस लैंड’

नंदिता दास की फिल्म ‘मंटो’ हमारे बेहद अजीज़ रचनाकार मंटो पर निर्मित फिल्म के रिलीज़ होने का इंतजार था ! मंटो हमारे शहर में आएं और हम मिलने न…
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इक्कीसवीं शताब्दी के पुरुष में भी ओथेलो मौजूद है

बातचीत का चौथा हिस्सा जब आप कहानी लिखती हैं तो मन:स्थिति कैसी होती है। थोड़ा रचनाप्रक्रिया पर भी प्रकाश डालें?  शुरू के दो तीन सालों को…
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