तीसरा और अंतिम हिस्सा
उन दिनों नूं रानियां ( बहूरानियां ) सिर्फ कहने को रानियां थीं, औकात दासियों से बदतर थी। अपनी मर्जी से कोई फैसला लेने… Read More...
दूसरा हिस्सा
मौसी मां की बड़ी लाड़ली थी। मुझे अपने होश संभालने के बाद जो पहली शादी याद है, वह मौसी की शादी थी। विदाई की रस्म जेहन में क्यों… Read More...
भाग - दो
हमें तो इस घटना के बारे में मालूम पड़ा गेंदी बाई से। छुट्टियों में हम जब कभी भानपुरा जाते तो मैं गेंदी बाई से कुरेद-कुरेद कर उनके… Read More...
तीसरा और अंतिम हिस्सा
विवेक ने समाज को बदलने का जो बीड़ा उठाया था उसका एक रंग यह भी था कि स्वयं भी झोपड़पट्टी में रहकर झुग्गी - झोपड़ियों के… Read More...
हाल ही में देखी एक फिल्म का दृश्य है - एक छोटे से कमरे में दो दोस्त दाखिल होते हैं। घुसते ही एक कह उठता है - ‘यह कैसा कमरा है भाई, शुरु होते… Read More...
मैं सुखदम्बा की रहनेवाली हूं। मेरे माता-पिता वहीं रहते हैं। हम आठ भाई-बहन हैं। जब मैं बहुत छोटी थी, लगभग पांच-छः बरस की या उससे भी छोटी, तब… Read More...
नंदिता दास की फिल्म ‘मंटो’
हमारे बेहद अजीज़ रचनाकार मंटो पर निर्मित फिल्म के रिलीज़ होने का इंतजार था !
मंटो हमारे शहर में आएं और हम मिलने न… Read More...