Monday, July 7, 2025
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पूर्वांचल का चेहरा - पूर्वांचल की आवाज़

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संघ की राजनीतिक पिच पर खेल रही कांग्रेस

किसान न्याय रैली में दिखा प्रियंका गांधी का हिंदुत्व प्रेम 'आज नवरात्रि का चौथा दिन है। मैं व्रत हूं तो मैं मां की स्तुति से...

क्या महिलाओं को राजनीति में चालीस फीसदी भागीदारी महज़ चुनावी जुमला है

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रियंका का  कांग्रेस द्वारा महिलाओं को...

क्या गाँधी ने सावरकर से दया याचिका प्रस्तुत करने के लिए कहा था?

हिन्दू राष्ट्रवाद अपने नये नायकों को गढ़ने और पुरानों की छवि चमकाने का हर संभव प्रयास कर रहा है। इसके लिए कई स्तरों पर...

मस्जिद में लगेगी आग तो मंदिर भी नहीं बचेंगे (डायरी 20 अक्टूबर, 2021)

जिन दिनों भारत ने वैश्वीकरण की नीति को अपना समर्थन दिया था और जब मेरे गांव-शहर में दीवारों पर डंकल प्रस्ताव के खिलाफ नारे...

सरकार जनता से डरी हुई है इसलिए आंदोलनों को बेरहमी से कुचल देना चाहती है

बनारस में जातिगत जनगणना और किसान आन्दोलन जैसे विभिन्न मुद्दों को लेकर जाने-माने अधिवक्ता और सामाजिक चिंतक प्रेम प्रकाश सिंह यादव बहुत दिनों से...

अमित शाह को काला झंडा दिखाने वाली नेहा बनी समाजवादी छात्र-सभा की अध्यक्ष

इलाहाबाद में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को काला झंडा दिखाने वाली नेहा यादव को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने...

सत्ता और जनसत्ता (डायरी, 13 अक्टूबर 2021)

जीवन को लेकर मेरी एक मान्यता है। यह मान्यता विज्ञान पर आधारित है। मेरी मान्यता है कि ब्रह्मांड में कुछ भी स्वतंत्र  नहीं है।...

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे

लोहिया और बाद में जे.पी. के समय जो ग़लती समाजवादियों से हुई उसके प्रायश्चित का समय नजदीक आता जा रहा है। पर क्या यह...

साजिश की थ्योरी (डायरी 11 अक्टूबर 2021)

सियासत में और सियासत को समझने में आवश्यक अध्ययन में एक थ्योरी होती है। इसे मैं षडयंत्र की थ्योरी मानता हूं। इसमें होता यह...

सुप्रीम कोर्ट का सहज संज्ञान और सरकार का रवैया

लखीमपुर खीरी की बर्बरतापूर्ण घटना के बाद इंटरनेट पर वायरल हुये वीडियो और मारे गए किसानों के साथ प्रदर्शन में शामिल किसानों के बयान...

क्या महत्वपूर्ण मुद्दों पर बैठकें दिशाहीन हो चुकी हैं

पूर्वांचल में किसानों की समस्याएं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की समस्याओं से कहीं ज्यादा हैं लेकिन उनका कोई मुकम्मल संगठन नहीं होने की वजह से उनका गुस्सा और उनकी तकलीफें उनके और उनके परिवार तक सीमित हो गई हैं। पूर्वांचल में किसान संगठनों के नाम पर राजनीतिक पार्टियों के आनुषांगिक संगठन ही केवल काम कर रहे हैं, इसलिए किसानों का झुकाव भी इन संगठनों के प्रति अपनापन का नहीं है। संयुक्त किसान मोर्चा की पूर्वांचल इकाई की संरचना भी कुछ ऐसी ही दिखाई दे रही है। शायद इस वजह से पूर्वांचल में कोई बड़ा किसान आंदोलन खड़ा नहीं हो पा रहा है। 

राज्य पोषित हिंसा का सबसे खतरानाक नमूना है लखीमपुर खीरी की घटना

लखीमपुर खीरी की घटना एक चेतावनी है- हमारे लोकतंत्र का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। अजय कुमार मिश्र जिनके हिंसा भड़काने वाले बयान एवं गतिविधियां...

सियासत और समाज  ( डायरी 6 अक्टूबर, 2021)  

सियासत यानी राजनीति की कोई एक परिभाषा नहीं हो सकती है। साथ ही यह कि सत्ता पाने का मतलब केवल प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बनना...

दर्द के दरिया से वही पार हुआ जिसने सहा नहीं कहा

गालिब कहते हैं कि दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त दर्द से भर न आए क्यूँ / रोएँगे हम हज़ार बार, कोई हमें सताये...

राजा महेंद्र प्रताप के जरिए किसान आन्दोलन को बेअसर करने के प्रयास

 राजा महेंद्र प्रताप के नाम से अलीगढ़ में एक नए ‘विश्वविद्यालय’ की घोषणा हो गयी है। प्रधानमंत्री जी ने कहा कि पहले के लोगों...

क्या आप डॉ रत्नप्पा भरमप्पा कुम्हार को जानते हैं?

उत्तर भारत और हिन्दी भाषियों के लिए यह नाम शायद बिलकुल नया होगा क्योंकि इससे पहले इस पर कोई सार्वजनिक चर्चा नहीं हुई। वैसे...

यह भारत के कमंडलीकरण के खिलाफ मंडलीकरण को तेज करने का समय है

मैं बीपी मंडल को ओबीसी का महानायक और ओबीसी का संविधान निर्माता मानता हूँ और मंडलवाद को अपने अधिकारों की लड़ाई का सिद्धांत और...

क्या सभी कट्टरपंथी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे होते हैं?

क्या तालिबान की तुलना आरएसएस से हो सकती है? अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापिसी ने उनके पिछले शासनकाल की यादें ताजा कर दी...

जो बाजी ओहि बाची डायरी (28 अगस्त, 2021) 

कोई भी बदलाव एकवचन में नहीं होता। जब कुछ बदलता है तो उसके साथ बहुत कुछ बदल जाते हैं। ऐसा कभी नहीं होता कि...

ओबीसी होकर भी कल्याण सिंह ने ओबीसी के लिए क्या किया?

संघ ने सबसे पहले स्वयंसेवकों और प्रचारकों का एक विशाल नेटवर्क खड़ा किया जो जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव को औचित्यपूर्ण, धर्मसम्मत और देश की प्रगति की आवश्यक शर्त सिद्ध करने के अभियान में जुट गया। हो सकता है कि भारत के अतीत में बहुत कुछ बहुत अच्छा रहा हो परंतु यह निश्चित है कि उस समय दलितों और महिलाओं की स्थिति कतई अच्छी नहीं थी। जो लेखक भारत के अतीत का महिमामंडन करते हैं वे दलितों और महिलाओं की स्थिति के बारे में चुप्पी साध लेते हैं।

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