जुलाई 2021 में केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने किसानों को मवाली कहा था। केंद्रीय राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया ने मार्च 2021 में बयान दिया था कि किसान वो दिन याद करें जब गन्ने की पेमेंट के लिए कांग्रेस ने किसानों को घोड़ों के पैरों तले कुचलवाया था। इससे पूर्व दिसंबर 2020 में केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने कहा था कि किसान आन्दोलन में प्रदर्शन कर रहे कई लोग किसान नहीं दिखते हैं। यह किसान नहीं है जिन्हें कृषि कानूनों से कोई समस्या है, बल्कि वो दूसरे लोग हैं। विपक्ष के अलावा, कमीशन पाने वाले लोग इस विरोध के पीछे हैं।
जुलाई 2021 में केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने किसानों को मवाली कहा था। केंद्रीय राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया ने मार्च 2021 में बयान दिया था कि किसान वो दिन याद करें जब गन्ने की पेमेंट के लिए कांग्रेस ने किसानों को घोड़ों के पैरों तले कुचलवाया था। इससे पूर्व दिसंबर 2020 में केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने कहा था कि किसान आन्दोलन में प्रदर्शन कर रहे कई लोग किसान नहीं दिखते हैं। यह किसान नहीं है जिन्हें कृषि कानूनों से कोई समस्या है, बल्कि वो दूसरे लोग हैं। विपक्ष के अलावा, कमीशन पाने वाले लोग इस विरोध के पीछे हैं।
इससे पहले अगस्त 2021 में करनाल में किसानों पर हुए बर्बर लाठी चार्ज के ठीक पहले का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें एसडीएम आयुष सिन्हा ने साफ तौर पर सिपाहियों से कहा था कि यह बहुत सिंपल और स्पष्ट है। कोई कहीं से हो, उसके आगे नहीं जाएगा। अगर जाता है तो लाठी से उसका सिर फोड़ देना। कोई निर्देश या डायरेक्शन की जरूरत नहीं है।उठा-उठा कर मारना। तब भी हरियाणा के मुख्यमंत्री पुलिस की बर्बर कार्रवाई और अधिकारी के निर्णय से सहमत नजर आए थे। उन्होंने कहा था- शब्दों का चयन ठीक नहीं था। हालांकि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सख्ती जरूरी थी।
इस जघन्य वारदात की पटकथा तब से ही रची जाने लगी होगी जब किसानों को पाकिस्तान परस्त, खालिस्तानी, विलासी, आम टैक्स पेयर के पैसे से ऐश करने वाला सब्सिडीजीवी, अराजक, हिंसक एवं राजनीतिक दलों का पिट्ठू ठहराने वाली झूठ से भरी पहली जहरीली पोस्ट सोशल मीडिया में फैलाई गई होगी। यह पटकथा तब और पुख्ता हो गई होगी जब किसी वायरल पोस्ट के माध्यम से सरकार की गलत नीतियों के कारण बेरोजगारी और गरीबी की मार झेल रहे नौजवानों को यह विश्वास दिलाया गया होगा कि उनकी दुर्दशा के लिए अल्पसंख्यकों के बाद कोई जिम्मेदार है तो वह किसान ही हैं। इन किसानों को मार भगाना उनका राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। इससे भी बहुत पहले जब पहली बार युवाओं की किसी हिंसक भीड़ ने किसी निर्दोष को अपना अपराधी चुनकर उसका अपराध तय किया होगा और फिर उसे मृत्यु दंड दिया होगा तब ऐसे निर्मम एवं अमानवीय कृत्य की पूर्व पीठिका तैयार हो गई होगी। उस समय हम सब चुप थे, हमने इन नफरत फैलाने वाली पोस्ट्स का आनंद लिया, प्रतिवाद नहीं किया। हम यह सोचकर खुश होते रहे कि हम हिंसा करने वालों में से एक हैं, इसका शिकार बनने वाले तो कोई और हैं। हम अपने बच्चों को हिंसक शैतानों का जॉम्बी बनते देखते रहे। अब भी हम आत्मघाती चुप्पी के शिकार हैं। गांधी के देश में अहिंसा को कमजोरी बताकर खारिज किया जा रहा है और हम तमाशबीन बने हुए हैं।